भारतीय सभ्यता के इतिहास में नालंदा महाविहार का विशेष स्थान है। यह विश्व के सबसे प्रमुख बौद्ध शिक्षा केंद्रों में से एक था जो 5वीं सदी से 12वीं सदी तक विश्वभर में छाया डालता रहा। नालंदा की महाविहार का इतिहास एक शिक्षा केंद्र के रूप में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रकट करता है, जो विद्यार्थियों को विज्ञान, दर्शन, और साहित्य की ऊंची शिक्षा प्रदान करता था। नालंदा महाविहार का नाम बौद्ध धर्म के महान प्रचारक और सम्राट कुमारगुप्त के प्रासादी प्रथम श्रीगुप्त द्वितीय के पुत्र शक्रगुप्त ने बौद्ध धर्म के विश्वासी गजश्री विष्णुगुप्त के प्रेरणा से मिलान राज्य के नालंदा नामक स्थान पर आयोजित किया था। इसके बाद से नालंदा महाविहार बौद्ध धर्म और शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हो गया। नालंदा महाविहार एक अद्वितीय शिक्षा संस्थान था जो भारतीय और विदेशी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करता था। यहां बौद्ध धर्म के सिद्धांत, विज्ञान, और विभिन्न कलाओं की शिक्षा दी जाती थी। नालंदा महाविहार के गुरु और विद्यार्थी विभिन्न देशों से आते थे, जिनमें चीन, श्रीलंका, तिब्बत, म्यांमार, थाईलैंड, जापान, कोरिया, वियतनाम, नेपा...